दिल्ली, 24/08/2025, संपादन राम प्रकाश वत्स
भारत ने जिस तरह एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली (आईएडीडब्ल्यूएस) का पहला सफल परीक्षण किया है, वह केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के रक्षा क्षेत्र की ठोस मिसाल है। यह सफलता दिखाती है कि भारत अब विदेशी तकनीक पर निर्भर रहने के बजाय, अपने संसाधनों, शोध और प्रतिभा से आधुनिक युद्धक तकनीकों को गढ़ने में सक्षम है।
बहुस्तरीय रक्षा कवच से लैस यह प्रणाली न केवल भारतीय आकाश को सुरक्षित करेगी, बल्कि यह भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा नीति का अहम स्तंभ भी बनेगी।आज जब दुनिया तकनीकी युद्ध के नए दौर में प्रवेश कर चुकी है, हवाई हमले और ड्रोन हमले सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे हैं। ऐसे समय में आईएडीडब्ल्यूएस की सफलता भारत के लिए सुरक्षा संतुलन का मजबूत आधार है।
यह केवल रक्षा कवच नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है कि भारत अब किसी भी चुनौती का सामना स्वदेशी तकनीक से करने में समर्थ है। इससे हमारे सशस्त्र बलों का मनोबल तो बढ़ेगा ही, साथ ही यह पड़ोसी देशों और वैश्विक ताकतों के लिए भी स्पष्ट संकेत होगा कि भारत अब तकनीकी और सामरिक दृष्टि से आत्मनिर्भर राष्ट्र है।इस उपलब्धि का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” की नीति को वास्तविक धरातल पर स्थापित करती है।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता भारत की विदेशी आयात पर निर्भरता घटाएगी और भविष्य में हमें रक्षा निर्यातक राष्ट्र बनने की राह पर ले जाएगी। आज की यह उपलब्धि आने वाले कल में भारत को न केवल अपनी सीमाओं की सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में भी एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थापित करेगी। यही कारण है कि आईएडीडब्ल्यूएस का यह परीक्षण केवल एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और सुरक्षा नीति के लिए नए युग की शुरुआत है।—

