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सामूहिक संवेदना का न्याय: हिमाचल में बेसहारा गोवंश पर हाईकोर्ट की करुणामयी दृष्टि

RamParkash Vats
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सड़कों पर बेसहारा पशुओं की जिलावार गणना करें: हाई कोर्ट का सरकार को आदेश

सामूहिक गौवंश-हित में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इन मूक प्राणियों की पीड़ा को आँकड़ों में नहीं, अस्तित्व में पहचाना। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने साफ कहा—समस्या की जड़ पर प्रहार तभी संभव है, जब सरकार के पास सटीक तसवीर और पूरी गणना हो।
याचिकाकर्ता ने भी अपना पक्ष बिना भावुकता के, पर पूरी दृढ़ता से रखा–“जब तक यह पता ही न चले कि सड़कों पर कितने बेसहारा पशु हैं, समाधान कैसे बने?”

सामूहिक गौवंश-हित में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इन मूक प्राणियों की पीड़ा को आँकड़ों में नहीं, अस्तित्व में पहचाना। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने साफ कहा—समस्या की जड़ पर प्रहार तभी संभव है, जब सरकार के पास सटीक तसवीर और पूरी गणना हो।याचिकाकर्ता ने भी अपना पक्ष बिना भावुकता के, पर पूरी दृढ़ता से रखा—जब तक यह पता ही न चले कि सड़कों पर कितने बेसहारा पशु हैं, समाधान कैसे बने?”अदालत ने आदेश दिया—राज्य की सभी सड़कों पर घूम रहे बेसहारा गोवंश की जिलावार गणना हो हर काऊ सेंक्चुरी में पहले से रखे गोवंश का पूरा रिकॉर्ड पेश किया जाए बेसहारा पशुओं को टैग करने की प्रक्रिया शुरू हो ,यह आदेश महज़ सरकारी फाइलों का औपचारिक पन्ना नहीं, यह मानवीय चेतना का दबा हुआ अध्याय है—जो अदालत ने फिर से खोल दिया।

सरकार की स्थिति और अदालत की पड़ताल

पशुपालन विभाग ने शपथपत्र में बताया—(1) राज्य में 15 काऊ सेंक्चुरीज कार्यरत (2) 7 निर्माणाधीन (3) कुल 21,306 गोवंश अभयारण्यों और गौशालाओं में कांगड़ा जिले के लुथान स्थित राधे कृष्ण गोधाम गौ अभयारण्य में सीसीटीवी और तूड़ी स्टोर निर्माण का विवरण भी अदालत को दिया गया। ज्वालामुखी मंदिर ट्रस्ट इसके रख-रखाव की ज़िम्मेदारी लेगा। यह सरकारी मशीनरी और समाज का सुंदर साझीदार मॉडल है।पर कहानी यहीं पूरी नहीं होतीमीडिया रिपोर्टें अदालत के समक्ष रखी गईं—जहाँ पालमपुर, नादौन और पितृ तर्पण गौ सदन में क्षमता से अधिक पशु ठूँसे जाने की स्थिति सामने आई।कभी “अभयारण्य” थक जाते हैं, तो पशु फिर से सड़क पर लौट आते हैं—और यह चक्र अनंत चलता है।

नया अध्याय: कुंदन गौ अभयारण्य

यह मुकदमा सिर्फ कानून का नहीं, संवेदना का है

वक्त ने सड़कों पर भटकते गोवंश को राजनीति, धर्म, और दान की कथाओं में बाँट दिया—पर अदालत ने इन्हें जीवित प्राणी की श्रेणी में रखा।कानून ने दया नहीं, कर्तव्य का आदेश दिया है।सच यही है—(बेसहारा पशु न सरकार के हैं, न समाज के।वे बस अपने ही देश में अनाथ घूम रहे हैं।) -(हाईकोर्ट का यह फैसलाएक दस्तक है—(सरकार के दरवाज़े पर भी, औरसमाज की चेतना पर भी)_क्योंकि, सभ्यता की पहचान सड़कों पर चलती कारों से नहीं,सड़कों पर भटकते बेबस जानवरों के प्रति व्यवहार से मापी जाती है)

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