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हिमाचल में तबादला नीति सुधार — पारदर्शिता की दिशा में ठोस पहल

RamParkash Vats
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(संपादकीय मंथन, चिंतन और विश्लेषण)संपादक राम प्रकाश,

अब कर्मचारियों की पिछली तीन पोस्टिंगों के आधार पर होंगे तबादले; मनमानी और सिफारिशी संस्कृति पर लगेगा अंकुश

हिमाचल प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों के तबादलों की प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। अक्टूबर 2025 में जारी अधिसूचना के अनुसार अब किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का तबादला उसकी पिछली तीन पोस्टिंगों, प्रत्येक स्थान पर बिताए गए कार्यकाल और वर्तमान तैनाती की श्रेणी — सामान्य, कठिन या दूरस्थ क्षेत्र के आधार पर किया जाएगा। यह निर्णय वर्षों से चली आ रही मनमानी और सिफारिश-आधारित तबादलों की प्रवृत्ति को रोकने की दिशा में एक बड़ा प्रशासनिक सुधार माना जा रहा है।

नई व्यवस्था के तहत हर विभाग को तबादला प्रस्ताव के साथ एक “ट्रांसफर प्रोफार्मा” प्रस्तुत करना अनिवार्य किया गया है। इस प्रोफार्मा में कर्मचारी की पिछली तीन नियुक्तियों का पूरा ब्यौरा, प्रत्येक स्थान पर बिताए गए कार्यकाल, वर्तमान तैनाती की श्रेणी, प्रस्तावित स्थान की स्थिति तथा तबादले का औचित्य दर्ज करना होगा। कार्मिक विभाग ने स्पष्ट किया है कि बिना इस प्रोफार्मा के जारी कोई भी आदेश अवैध माना जाएगा, और ऐसे आदेश पारित करने वाले अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। इस कदम से प्रशासनिक निर्णयों में जवाबदेही और रिकॉर्ड की पारदर्शिता दोनों सुनिश्चित होंगी।

यह सुधार हिमाचल प्रदेश की “Comprehensive Guiding Principles – 2013” का ही विस्तार है, जिसमें सामान्यतः कर्मचारियों के लिए तीन वर्ष की सेवा अवधि का प्रावधान है। नया निर्देश उसी ढाँचे को और सशक्त बनाता है — अब तबादला केवल नियमों पर नहीं, बल्कि सत्यापित सेवा-रिकॉर्ड पर आधारित होगा। यह परिवर्तन उन सभी विभागों में समान रूप से लागू होगा जहाँ तबादला संस्कृति वर्षों से विवादों का कारण रही है।

शिक्षा विभाग में इसका विशेष प्रभाव देखने को मिलेगा। राज्य में सबसे अधिक तबादले इसी विभाग में होते हैं, और इनमें पारदर्शिता की कमी अक्सर विवादों को जन्म देती रही है। मार्च 2025 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार शिक्षकों का तबादला 30 किलोमीटर से कम दूरी पर न करने और एक विद्यालय में कम से कम दो वर्ष की सेवा अनिवार्य की गई थी। अब प्रोफार्मा व्यवस्था से यह सुनिश्चित होगा कि शिक्षकों की प्रत्येक पोस्टिंग के साथ उनका पूरा सेवा-रिकॉर्ड परखा जाए, जिससे बार-बार नज़दीकी स्थानांतरण या मनपसंद पोस्टिंग की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

सरकार का उद्देश्य स्पष्ट है — तबादले अब “व्यक्तिगत सुविधा” के बजाय “प्रशासनिक आवश्यकता” के सिद्धांत पर होंगे। इससे कार्यसंस्कृति में निष्पक्षता, भरोसे और स्थायित्व का माहौल बनेगा। यद्यपि प्रारम्भिक चरण में विभागों को प्रोफार्मा प्रक्रिया के कारण कुछ अतिरिक्त प्रशासनिक दायित्व निभाने होंगे, किंतु दीर्घकाल में यह सुधार राज्य शासन को अधिक व्यवस्थित और उत्तरदायी बनाएगा।

दरअसल, हिमाचल प्रदेश सरकार की यह पहल केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि शासन की मानसिकता में परिवर्तन का संकेत है। अब स्थानांतरण किसी प्रभावशाली व्यक्ति की सिफारिश से नहीं, बल्कि कर्मचारी की सेवा अवधि, कार्य प्रदर्शन और क्षेत्रीय संतुलन के आधार पर होंगे। पारदर्शिता और जवाबदेही का यह नया अध्याय हिमाचल को एक नीति-आधारित, निष्पक्ष और सुशासित राज्य के रूप में आगे ले जाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम सिद्ध हो सकता है।

संपादक राम प्रकाश
दिनांक ,4 नवम्बर 2025
विशेष संपादकीय टिप्पणी :-न्यूज़ इंडिया आजतकडाट काम कार्यालय भरमाड , वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक /संपादक राम प्रकाश वत्स
Mob:-88947-23376

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