Reading: हिमाचल प्रदेश की लुप्त होती मातृभाषाएँ — सब उन्नति को मूल/हिमाचल की मातृभाषाएँ : संस्कृति की जड़ों से जुड़ने का आख़िरी पुल

हिमाचल प्रदेश की लुप्त होती मातृभाषाएँ — सब उन्नति को मूल/हिमाचल की मातृभाषाएँ : संस्कृति की जड़ों से जुड़ने का आख़िरी पुल

RamParkash Vats
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(संपादकीय मंथन, चिंतन और विश्लेषण)संपादक राम प्रकाश,

कवि की यह पंक्ति
“बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को सूल।”
स्पष्ट करती है कि मातृभाषा के ज्ञान के बिना किसी समाज की वास्तविक उन्नति संभव नहीं है। अपनी भाषा से ही समाज की संवेदना, संस्कृति और चेतना जीवित रहती है।यदि हम हिमाचल की इन मातृभाषाओं को संरक्षित नहीं कर पाए, तो आने वाली पीढ़ियाँ उस विरासत से वंचित हो जाएँगी जो हमें हमारे पूर्वजों से मिली है। समय की मांग है कि हम अपनी भाषाई विविधता को कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी शक्ति के रूप में स्वीकार करें।अतः हिमाचल की हर बोली, हर शब्द और हर लोकगीत की रक्षा हमारा नैतिक दायित्व है। जब तक हमारी मातृभाषाएँ जीवित हैं, तब तक हिमाचल की आत्मा भी जीवित है।

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