शिमला,28/10/2025/राज्य ब्यूरो,Vijay Samyal
हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों पर शारीरिक दंड देना अब शिक्षकों को भारी पड़ सकता है। हाल ही में रोहड़ू और भरमौर में सामने आए दो मामलों ने शिक्षा विभाग को झकझोर कर रख दिया है। राज्य के शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए दोषी शिक्षकों के खिलाफ निलंबन, एफआईआर और नौकरी से बर्खास्तगी तक की कार्रवाई के निर्देश जारी किए हैं।
आरटीई एक्ट के तहत शारीरिक दंड पूरी तरह प्रतिबंधित
‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ (Right to Education Act) 2009 की धारा 17 (1) और (2) के तहत किसी भी विद्यार्थी को शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीड़न देना पूरी तरह प्रतिबंधित है। स्कूल शिक्षा निदेशालय समय-समय पर जिला अधिकारियों को निर्देश जारी करता रहा है कि छात्र-छात्राओं के साथ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार, मारपीट या अपमानजनक व्यवहार न हो।फिर भी, हाल के मामलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कुछ शिक्षक इन नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। शिमला जिले के रोहड़ू उपमंडल के गवाना स्कूल में एक शिक्षिका द्वारा छात्र को कांटेदार झाड़ी से पीटने का वीडियो वायरल हुआ, जिसने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया।
लंबे समय तक रहने वाले दुष्प्रभाव
शिक्षा विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, शारीरिक दंड से बच्चों में भय, आत्मग्लानि और विरोध की भावना बढ़ती है। ऐसे व्यवहार से विद्यार्थियों के मानसिक विकास और आत्मविश्वास पर गहरा असर पड़ता है। निदेशक स्कूल शिक्षा आशीष कोहली के अनुसार, “शारीरिक दंड बच्चे के मस्तिष्क के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को कमजोर करता है। स्कूल प्रमुखों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराएं।”
भरमौर केस: आठ वर्षीय छात्र का कान फटा
चंबा जिले के भरमौर उपमंडल के एक सरकारी स्कूल में तीसरी कक्षा के आठ वर्षीय छात्र को शिक्षक द्वारा पीटे जाने का मामला सामने आया है। परिजनों के अनुसार, शिक्षक की पिटाई से बच्चे के कान का पर्दा फट गया और उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। बच्चा फिलहाल मेडिकल कॉलेज चंबा में उपचाराधीन है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।इसी तरह हमीरपुर में भी एक महीने पहले शारीरिक शिक्षक पर बच्चों को “मुर्गा” बनाकर रखने और पीटने के आरोप लगे थे। अभिभावकों की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी।
विभागीय सख्ती और संभावित सजा
शिक्षा विभाग ने रोहड़ू की आरोपित शिक्षिका को तुरंत निलंबित कर दिया है और विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर शिक्षकों के खिलाफ चार्जशीट, इंक्रीमेंट रोकने, बर्खास्तगी और कानूनी कार्रवाई तक की सजा हो सकती है।शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने कहा, “यह अमानवीय व्यवहार है, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शिक्षिका को निलंबित कर दिया गया है और एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दे दिए गए हैं। विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है।”
कानूनी दृष्टि से क्या कहते हैं नियम
क्या यह न्याय संगत है?
बिलकुल न्याय-संगत नहीं। किसी भी बच्चे को मारना या अपमानित करना उसकी गरिमा, सुरक्षा और मानसिक विकास के अधिकार का उल्लंघन है। अनुशासन सिखाने का अर्थ हिंसा नहीं है; ऐसे व्यवहार से बच्चों में भय, आत्मविश्वास की कमी और शिक्षा से दूरी पैदा होती है। शिक्षक का कर्तव्य प्रेरणा देना है, न कि दंड देना।
2. क्या कानून में बैन है?
हाँ, पूरी तरह। RTE Act, 2009 की धारा 17 में शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध है।इसमें बच्चों को मारना, डांटना, चिकोटी काटना, घुटनों के बल बैठाना, क्लास में बंद करना, या किसी भी तरह का अपमान शामिल है। इसका उल्लंघन करने पर दोषी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है।
3. किन नियमों/संस्थाओं का सहारा लिया जा सकता है?
National/State Commission for Protection of Child Rights (NCPCR/SCPCR) में शिकायत की जा सकती है। साथ ही स्कूल प्रबंधन या शिक्षा विभाग अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकते हैं। गंभीर मामलों में IPC की धाराएँ (323/325) और Juvenile Justice Act भी लागू होती हैं।आरटीई एक्ट 2009 के तहत शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना अपराध की श्रेणी में आता है। इसमें बच्चों को मारना, डांटना, चिकोटी काटना, घुटनों के बल बैठाना, क्लास में बंद करना, या किसी भी तरह का अपमान शामिल है। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले शिक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ किशोर न्याय अधिनियम के तहत आपराधिक मामला भी दर्ज किया जा सकता है।

