हिमाचल प्रदेश सरकार का यह कदम विद्यार्थियों के हित में एक सकारात्मक और दूरदर्शी पहल के रूप में देखा जा रहा है। युवाओं को नशे की बुरी लत से बचाना केवल कानून-व्यवस्था का विषय नहीं, बल्कि समाज और शिक्षा व्यवस्था की भी साझा जिम्मेदारी है।

विद्यार्थियों की सुरक्षा पर प्राथमिक फोकस
राज्य सीआईडी और शिक्षा विभाग के सहयोग से मूत्र-आधारित ड्रग परीक्षण किट का प्रयोग प्रदेश के स्कूलों और कॉलेजों में किया जाएगा। यह तकनीक तेज़ और भरोसेमंद है, जिससे चंद मिनटों में ही नशा करने वाले विद्यार्थियों का पता चल सकेगा। सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस प्रक्रिया को दंड की बजाय सुरक्षा और सहयोग की भावना से जोड़ा गया है।
सहायता और पुनर्वास का मार्ग
इस पहल के तहत जिन विद्यार्थियों में नशे की प्रवृत्ति पाई जाएगी, उन्हें तुरंत सहायता और पुनर्वास से जोड़ा जाएगा। यह कदम बच्चों को दंडित करने के लिए नहीं, बल्कि समय रहते उन्हें सही दिशा देने के लिए है। समझाने, जागरुक करने और परामर्श देने की प्रक्रिया इस योजना का अहम हिस्सा होगी।

गोपनीयता और सम्मान की गारंटी
और शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि यह प्रयोग विद्यार्थियों की गोपनीयता का पूरा सम्मान करते हुए किया जाएगा। परीक्षण के परिणाम केवल जिम्मेदार अधिकारियों और अभिभावकों के बीच साझा होंगे। साथ ही, अभिभावक-शिक्षक संघ (पीटीए) की सक्रिय भागीदारी से एक पारदर्शी और संवेदनशील प्रक्रिया विकसित की जाएगी।
नशा मुक्त शिक्षण वातावरण की दिशा
ड्रग टेस्टिंग किट का उपयोग केवल तकनीकी समाधान नहीं, बल्कि एक संदेश है कि हिमाचल प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था नशामुक्त वातावरण सुनिश्चित करने के लिए संकल्पित है। जागरुकता अभियानों, सेमिनारों और परामर्श कार्यक्रमों के साथ यदि यह पहल आगे बढ़ती है, तो निश्चित ही यह विद्यार्थियों को सुरक्षित रखने में मील का पत्थर साबित होगी।
यह सराहनीय है कि हिमाचल सरकार ने विद्यार्थियों के भविष्य को बचाने के लिए प्रारंभिक पहचान और समय पर हस्तक्षेप जैसे उपायों पर जोर दिया है। शिक्षा का असली मकसद ज्ञान देने के साथ-साथ बच्चों को जीवन की सही राह दिखाना है। यह पहल उसी दिशा में उठाया गया सकारात्मक और विद्यार्थी-केंद्रित कदम है।

