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आजाद भारत में गांधीजी का अनशन

RamParkash Vats
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महात्मा गाँधी का अंतिम अनशन

1 सितंबर 1947 को गांधीजी हैदरी मंजिल कलकत्ता में सोहरावर्दी के साथ अनशन पर बैठे**

लेखिक:डॉ अशोक कुमार सोमल पूर्व भारतीय वन सेवा अधिकारी हि. प्र.

गांधी 9 अगस्त 1947 को माउंटबेटन और पटेल के आग्रह पर दंगाग्रस्त कलकत्ता पहुंचते हैं। वे सोदपुर आश्रम में रुकते हैं। हिंदुओं के खून से सना हुआ शहीद सुहरावर्दी जब 12 अगस्त को गांधी के सोदपुर आश्रम पहुंचता है और गांधी से कहता है कि आप जलते हुए कलकत्ता में शांति स्थापित कर दीजिए महात्मा जी । अभी आप यहीं रुकिए और कलकत्ता में शांति स्थापित कीजिये।*1947 में भारत के विभाजन के बाद, विशेष रूप से बंगाल और पंजाब में, हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच व्यापक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। कोलकाता, जो तब पश्चिम बंगाल की राजधानी थी, में भी हिंसा की घटनाएं बढ़ रही थीं। गांधी जी, जो सांप्रदायिक सौहार्द और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे, इस हिंसा से बहुत दुखी थे। उन्होंने हिंसा को रोकने और लोगों को शांति का संदेश देने के लिए अनशन को अपने सबसे शक्तिशाली हथियार के रूप में चुना।

*1946 के ‘डायरेक्ट एक्शन’ का खलनायक सुहरावर्दी, उस घटना के एक वर्ष बाद गांधीजी से भेंट करने आया हैं। गांधीजी में एक विलक्षण गुण था वे अपने दुश्मन के बुरे गुणों में उसके अच्छे पक्ष को पहचान कर उसे उभारने का प्रयास बड़ी शालीनता से कर लेते थे और इससे जनमानस का क्या भला हो सकता है यह भांप लेते थे।

*गांधी ने सुहरावर्दी से कहा ” अगर मैं कलकत्ता रुकने का विचार करता हूँ तो मेरी दो शर्तें होंगी।पहली शर्त यह है कि आपको नोआखाली के मुसलमानों से यह लिखित में पक्का वादा लेना होगा कि वहां के हिन्दू उनके बीच सुरक्षित हैं। अगर एक भी हिन्दू मारा गया तो मैं तुमको उसके खून का जिम्मेदार मानूंगा। और तुम्हारे घर पर अनशन करके अपने प्राण दे दूंगा। दूसरी शर्त है कि जब तक कलकत्ता में स्थाई शांति नहीं हो जाती तब तक कलकत्ता की गंदी बस्ती में तुम और मैं अकेले एक साथ रहेंगे। किसी भी प्रकार की पुलिस या हथियार हैदरी मंजिल में नहीं रहेंगे।

*सुहरावर्दी ने कहा कि हिन्दुओं ने अगर मुझ पर हमला किया तो ? गांधी ने कहा कि तुम्हारी जान की जमानत में लेता हूँ। चूंकि हिंदुओं की हिंसक प्रतिक्रिया से वह भयभीत था उसने गांधी की दोनों शर्ते मान लीं। कांग्रेस अध्यक्ष सैयद महमूद और अन्य लोग भयभीत हो जाते हैं कि बापू अकेले में सुहरावर्दी के साथ रहेंगे तो उनको खतरा हो सकता है। गांधी उन्हें समझाते हैं कि मेरी अहिंसा की यह सबसे बड़ी परीक्षा है अगर सफल हुआ तो वापस आऊंगा नहीं तो मर जाऊंगा आप मुझे ईश्वर के हाल पर छोड़ दें।

*1 सितंबर को एक पुरानी खस्ताहाल शेवरलेट कार गांधीजी को लेकर कलकत्ता के बेलियाघाट रोड पर धीरे धीरे बढ़ने लगी। वह 151 नम्बर की पुरानी कार पथरीली और ऊबड़ खाबड़ नीचे की दीवार के सामने एक मकान पर रुकी । जिसका नाम था हैदरी हाउस।गांधी , सोहरावर्दी के साथ अकेले हैदरी मेंशन में रुकते हैं। यह भी अपने स्तर पर बड़ा लोमहर्षक प्रसंग है।

*गांधी सुहरावर्दी से कहते हैं कि आप अगर मेरे साथ आते हैं तो पहले पुराने सुहरावर्दी को मरना होगा तभी फकीर सोहरावर्दी का जन्म होगा। सुहरावर्दी बाहर जाकर सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं कि उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है और तब गांधी उनके साथ हैदरी मेंशन में रहना स्वीकार करते हैं। वहां गांधीजी पर हमला होता है। भीड़ सुहरावर्दी को मारने के लिए हैदरी मेंशन को घेर लेती है । गांधी बाहर निकलते हैं और कहते हैं कि सुहरावर्दी को मारने से पहले मुझे मारना होगा । भीड़ रूक जाती है । गांधीजी जानते थे कि लोगों का ह्रदय परिवर्तन जरूरी है ।

*15 अगस्त, 1947 को स्वाधीनता दिवस सौहार्दपूर्ण माहौल में मनाया गया।लेकिन यह शांति अस्थायी थी, ऐसा लगता है जैसे स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्रपिता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने थोड़ी गम खा ली थी। 27 अगस्त तक पंजाब और सिंध से आने वाले हिंसा के समाचारों ने कलकत्ता में भी सांप्रदायिक उफान ला दिया. ऊपर से छाई हुई नकली शांति का गुब्बारा फूट गया। घटनाक्रम किसी तूफान की गति से आगे बढ़ा, पर अब 77 साल के बुढ़े गांधी के पास सिर्फ अपनी देह बची थी, जिसे वे दांव पर लगा सकते थे। एक सितंबर को महात्मा ने आमरण उपवास का निर्णय कर लिया। आजाद भारत में गांधी का यह पहला उपवास था। उपवास 4 दिन चला

* 1 सितंबर 1947: गांधी जी ने अनशन शुरू किया। उन्होंने घोषणा की कि वे तब तक भोजन या पानी नहीं लेंगे, जब तक कोलकाता में शांति बहाल नहीं हो जाती। उनकी इस घोषणा ने शहर के लोगों और नेताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा।अनशन के पहले दिन से ही कोलकाता में हिंसा की घटनाओं में कमी आने लगी। लोग गांधी जी की नैतिक अपील से प्रभावित हुए और सांप्रदायिक तनाव कम होने लगा। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के नेताओं ने गांधीजी से मुलाकात की और शांति बहाल करने का वादा किया। विभिन्न संगठनों और सामाजिक समूहों ने हिंसा को रोकने के लिए प्रयास शुरू किए।

*3 सितंबर 1947: तीसरे दिन तक, कोलकाता में स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में आ चुकी थी। हिंदू और मुस्लिम नेताओं ने संयुक्त रूप से गांधी जी को आश्वासन दिया कि वे हिंसा को पूरी तरह समाप्त करने के लिए मिलकर काम करेंगे।

*4 सितंबर 1947: गांधी जी को यह विश्वास हो गया कि शहर में शांति स्थापित हो रही है। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के नेताओं ने एक लिखित समझौता प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता जताई। इसके बाद गांधी जी ने अपना अनशन तोड़ा।

*इस अनशन से कलकत्ता में सांप्रदायिक हिंसा में उल्लेखनीय कमी आई। यह अनशन कलकत्ता का चमत्कार” (Miracle of Calcutta) के रूप में जाना गया, क्योंकि इसने शहर में शांति बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

*माउंटबेटन के प्रेस सलाहकार एलन कैंपबेल जॉनसन ने इस उपवास के बारे में लिखा ‘गांधी के उपवास में लोगों के अंतर्मन को झकझोर देने की कैसी अद्भुत शक्ति है, इसे तो सिर्फ ‘गांधी उपवास का साक्षी ही समझ सकता है।’*बंगाल प्रचार विभाग के डायरेक्टर ने चाहा कि गांधी जी की उपवास मुद्रा का फोटो छापने से प्रचार कार्य में सहायता मिलेगी। गांधी ने मना कर दिया, ‘लोगों की क्षणिक दया-माया के लिए मैं अपनी क्षीण मुद्रा से अपील नहीं करना चाहता हूं.’ उपवास के चौथे दिन सोहरावर्दी, हिंदू महासभा के प्रांतपति ए.सी. चटर्जी और सरदार निरंजन सिंह तालीब ने गांधी जो को शहर में अमन-चैन बहाल होने की रिपोर्ट सौंपी और कहा कि अगर अब अशांति पैदा हुई तो वे तीन नेता स्वयं जिम्मेदार होंगे. मिशन कलकत्ता पूरा चुका था। गांधी दिल्ली के लिए रवाना हुए। सोहरावर्दी बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगे।*उपवास का चमत्कारी प्रभाव हुआ। माउंटबेटन ने कहा था ‘ हमारी 50 हजार सेना की बटालियन पंजाब में वो काम नहीं कर पाई जो काम बंगाल में एक वन मेन बटालियन ने किया और मैं उस वन मेन बटालियन के आगे नतमस्तक हूँ उस वन मेन बटालियन का नाम है मोहनदास करमचंद गांधी।’

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