🔹 क्लस्टर प्रणाली क्या है
सरकार ने 2023–24 से सरकारी स्कूलों में “स्कूल कॉम्प्लेक्स/क्लस्टर मॉडल” लागू करने की पहल की। इसके अंतर्गत आसपास के छोटे-छोटे विद्यालयों को एक बड़े “क्लस्टर स्कूल” से जोड़ा गया।छोटे विद्यालयों का प्रबंधन और शैक्षिक गतिविधियाँ बड़े विद्यालय (Hub school) से नियंत्रित होती हैं।
संसाधन, अध्यापक और प्रशासनिक कामकाज साझा करने की व्यवस्था की जाती है।
उद्देश्य: राज्य पर आर्थिक बोझ कम करना और शिक्षा की गुणवत्ता में एकरूपता लाना।ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे विद्यालयों को क्लस्टर में मिलाने से वहाँ के अध्यापक संख्या घट गई।इससे उन क्षेत्रों के अध्यापक स्थायी पद खोने या स्थानीय नियुक्ति में कमी की आशंका जता रहे हैं।इससे ग्रामीण बच्चों की पहुँच भी सीमित हो सकती है, जिसका दोष अक्सर अध्यापकों पर ही मढ़ा जाता है।
क्लस्टर प्रणाली: सुधार की राह या विवाद का रास्ता?
हिमाचल प्रदेश में शिक्षा सुधारों की श्रृंखला में हाल के वर्षों में सबसे चर्चित और विवादित प्रयोग “क्लस्टर प्रणाली” बन गया है। सरकार का तर्क है कि इस व्यवस्था से शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी और संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा। मगर दूसरी ओर अध्यापक संगठन इसे नुकसानदायक मानते हैं और इसका विरोध कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह व्यवस्था वास्तव में शिक्षा में क्रांति ला पाएगी या फिर शिक्षकों और बच्चों के लिए बोझ साबित होगी? आइए इस पर संतुलित नज़र डालें।
- सरकार का पक्ष: क्यों लाई गई क्लस्टर प्रणाली?
हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग के अनुसार राज्य में छोटे-छोटे स्कूलों की बड़ी संख्या है, जहाँ छात्र संख्या सीमित है लेकिन शिक्षकों और संसाधनों पर समान खर्च होता है। उदाहरण के तौर पर, कई प्राथमिक विद्यालयों में 10–15 बच्चों की कक्षाओं में पाँच-पाँच अध्यापक तैनात रहते हैं, जबकि आस-पास के किसी बड़े विद्यालय में बच्चों की संख्या बहुत अधिक होने पर शिक्षक अनुपात कम पड़ जाता है।
सरकार का तर्क है कि क्लस्टर प्रणाली से:
छोटे विद्यालयों को मिलाकर एक क्लस्टर स्कूल बनाया जाएगा जहाँ पर्याप्त शिक्षक और विषय-विशेषज्ञ उपलब्ध होंगे।इससे अर्थव्यवस्था पर बोझ कम होगा क्योंकि अव्यवस्थित ढांचे में वेतन और संसाधनों का जो अनावश्यक खर्च हो रहा है, वह रुकेगा।बच्चों को बेहतर लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, स्मार्ट क्लास और खेल सुविधाएँ मिल पाएँगी, जो छोटे स्कूलों में संभव नहीं थीं।शिक्षक आपसी सहयोग से एक-दूसरे से सीखेंगे और गुणवत्ता पर फोकस होगा।सरकार का यह भी दावा है कि यह प्रणाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है, जिसमें शिक्षा को “संसाधन-साझा मॉडल” की तरफ ले जाने का लक्ष्य है।
अध्यापकों का विरोध: क्या खोने का डर है?
जहाँ सरकार फायदे गिना रही है, वहीं अध्यापक संगठनों ने इस प्रणाली को “नुकसानदायक” बताया है और कई स्थानों पर इसका विरोध किया है।
अध्यापकों की प्रमुख आपत्तियाँ:
स्थानांतरण और असुरक्षा:कई छोटे विद्यालयों से अध्यापकों को क्लस्टर स्कूल में समायोजित करना होगा। इससे उन्हें अपने घरों से दूर तैनात होना पड़ेगा, जबकि वे वर्षों से एक ही विद्यालय में पढ़ा रहे थे।पहचान का संकट:गाँव-गाँव में फैले प्राथमिक विद्यालय केवल शिक्षा केंद्र ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा भी हैं। इनके “क्लस्टर स्कूल” में विलय से स्थानीय स्कूलों की पहचान मिट जाएगी।अतिरिक्त बोझ:क्लस्टर स्कूल में बच्चों की संख्या अधिक होने से अध्यापकों पर पढ़ाई और प्रशासनिक काम का बोझ बढ़ेगा।नौकरी असुरक्षा का डर:शिक्षकों को यह आशंका है कि लंबे समय में इस प्रणाली से संविलयन और पदों की कटौती होगी।छात्रों की दूरी की समस्या:छोटे बच्चों को क्लस्टर स्कूल तक पहुँचने के लिए लंबी दूरी तय करनी होगी, जिससे उनकी सुरक्षा और उपस्थिति दोनों प्रभावित होंगी।यही कारण है कि शिक्षक संगठन लगातार इसे अव्यवहारिक और शिक्षा विरोधी कदम बताते हुए आंदोलन कर रहे हैं।
शिक्षा पर वास्तविक असर: संतुलन की ज़रूरत
अब सवाल यह है कि इसका शिक्षा की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ेगा?
सकारात्मक पहलू:संसाधन साझा होने से बच्चों को बेहतर शिक्षा सामग्री और सुविधाएँ मिल सकती हैं।विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की उपलब्धता से विशेषकर गणित, विज्ञान और अंग्रेज़ी की पढ़ाई मज़बूत होगी।सरकारी खर्च घटेगा और बची हुई राशि शिक्षा गुणवत्ता सुधार में लगाई जा सकती है।
नकारात्मक पहलू:ग्रामीण इलाकों में बच्चों की ड्रॉपआउट दर बढ़ने का खतरा है क्योंकि सभी अभिभावक बच्चों को दूर भेजने में सक्षम नहीं हैं।सामाजिक स्तर पर छोटे स्कूलों का बंद होना ग्रामीण समाज में निराशा और असंतोष फैला सकता है।यदि शिक्षकों के असंतोष को दूर नहीं किया गया तो इसका सीधा असर कक्षा-कक्ष की पढ़ाई पर पड़ेगा।
सरकार को चाहिए कि:अध्यापक संगठनों से गहन संवाद कर उनकी शंकाएँ दूर करे।छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित परिवहन और आवासीय सुविधा सुनिश्चित करे।क्लस्टर स्कूलों के साथ-साथ छोटे विद्यालयों में भी आधुनिक संसाधन पहुँचाने का प्रयास करे।किसी भी स्तर पर नौकरी असुरक्षा न पैदा हो, इसका आश्वासन दे। प्रणाली हिमाचल प्रदेश में शिक्षा सुधार की दिशा में एक बड़ा प्रयोग है। सरकार इसे आर्थिक रूप से लाभकारी और गुणवत्तापूर्ण मानती है, लेकिन अध्यापकों को इसमें अपने अस्तित्व और अधिकारों पर संकट दिखता है। यह टकराव तभी दूर होगा जब सरकार, अध्यापक और समाज मिलकर इस पर संतुलित रास्ता निकालें।

