हिमाचल प्रदेश, जो प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के लिए पहचाना जाता है, आज एक गहरे सामाजिक–आर्थिक संकट से जूझ रहा है। यह संकट केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्तर तक फैला हुआ है। बेरोज़गारी का मुद्दा अब राज्य की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। पिछले तीन–चार दशकों से सत्ता में रही भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल इस समस्या के स्थायी समाधान में असफल रहे हैं। नतीजतन, युवाओं की पीढ़ियाँ अपनी डिग्रियों के साथ घरों में बैठी हैं ।
सरकारी डिग्रियाँ और अधूरे सपने
प्रदेश के विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों और प्रशिक्षण केंद्रों से हर साल हजारों छात्र–छात्राएँ स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर बाहर निकलते हैं। डिप्लोमा और प्रोफेशनल कोर्सेज़ पूरा करने वाले युवाओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन उनकी मेहनत और लगन एक कागज़ी प्रमाणपत्र तक सीमित होकर रह जाती है। यह कड़वी सच्चाई है कि हिमाचल में शिक्षा और रोजगार का कोई सीधा रिश्ता नहीं रह गया है सरकारी नौकरियां का दरवाजा संकरा हो गया है और निजी क्षेत्र में स्थायी अवसर लगभग न के बराबर हैं। बड़ी मुश्किल से जो नौकरियाँ मिलती भी हैं, वे तीन–छह महीने की अस्थायी नियुक्ति के बाद समाप्त हो जाती हैं। यह एक तरह का छलावा है, जिसने युवाओं के विश्वास को गहरी चोट पहुँचाई है।
सरकारी विभागों की दुर्दशा
लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति विभाग, बिजली बोर्ड और स्वास्थ्य विभाग आधि जैसे संस्थानों की स्थिति इस समस्या को और गहराई से उजागर करती है। इन विभागों में वर्षों से हज़ारों पद रिक्त पड़े हैं। एक–एक कर्मचारी से तीन–तीन पदों का काम करवाया जा रहा है। कर्मचारियों पर काम का असहनीय बोझ है, और बाहर योग्य युवा नौकरी के लिए दर–दर भटक रहे हैं।
सरकारें जानबूझकर आउटसोर्सिंग और ठेके की प्रणाली को बढ़ावा देती रही हैं। इस प्रणाली में युवाओं को न्यूनतम वेतन पर अधिकतम काम कराना संभव हो जाता है। इससे सरकार की जवाबदेही भी कम हो जाती है और युवाओं का भविष्य लगातार अस्थिरता के गर्त में धकेला जाता है।
राजनीतिक दलों का दोहरा रवैया
भाजपा और कांग्रेस — दोनों ही दलों ने बेरोज़गारी को केवल चुनावी मुद्दा बना रखा है। सत्ता में रहते हुए इनकी प्राथमिकता घोषणाओं और वादों तक सीमित रहती है। बेरोज़गार युवाओं के लिए कोई ठोस नीति कभी लागू नहीं हो पाई। सत्ता बदलते ही पिछली सरकार द्वारा लगाए गए आउटसोर्स कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया जाता है। यह सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है, जिससे युवाओं का भविष्य बार–बार दाँव पर लग जाता है।
राजनीति का यह दोहरा रवैया केवल अवसरों को सीमित ही नहीं करता, बल्कि बेरोज़गारों के मनोबल को भी तोड़ता है। बेरोज़गारी को लेकर गंभीर नीति न होना, दरअसल, हिमाचल की राजनीतिक असफलता की सबसे बड़ी तस्वीर है।
सामाजिक संकट का गहराता स्वरूप
बेरोज़गारी अब महज़ नौकरी पाने–न पाने का सवाल नहीं रह गया है। यह एक गहरे सामाजिक संकट में बदल चुकी है।जो युवा वर्षों से बेरोज़गार हैं, वे आज विवाह और परिवार जैसी ज़िम्मेदारियों में बंध चुके हैं। उनकी आर्थिक असुरक्षा पूरे परिवार को प्रभावित कर रही है।बेरोज़गार युवाओं में मानसिक तनाव, अवसाद और निराशा बढ़ रही है। आत्महत्या की घटनाएँ भी इससे जुड़ी हुई दिखाई देती हैं।समाज में असमानता और अपराध की प्रवृत्तियाँ बेरोज़गारी से और गहरी होती जा रही हैं।यह स्थिति केवल व्यक्तिगत जीवन को ही नहीं, बल्कि सामूहिक सामाजिक संरचना को भी कमजोर कर रही है।
अवसरों की कमी और ठहराव
हिमाचल का भौगोलिक स्वरूप उद्योगों की स्थापना के लिए चुनौतीपूर्ण है। लेकिन यह भी सच है कि सरकारों ने स्थानीय संसाधनों का सही उपयोग नहीं किया। पर्यटन, कृषि, बागवानी, आईटी और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ होने के बावजूद इनका पूरा दोहन कभी नहीं किया गया।स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन देने की बजाय सरकारें बाहरी पूँजी और कंपनियों पर निर्भर रहीं, जो अस्थायी अवसर देकर निकल गईं। इससे प्रदेश के युवाओं के लिए रोजगार का स्थायी ढाँचा कभी खड़ा नहीं हो पाया।
आगे की राह
अब समय आ गया है कि बेरोज़गारी के मुद्दे को चुनावी नारों और घोषणाओं से बाहर निकालकर ठोस नीतियों में बदला जाए। इसके लिए कुछ कदम अत्यावश्यक हैं:
- बेरोज़गार मंत्रालय की स्थापना – युवाओं के रोजगार से जुड़े मुद्दों पर एक स्वतंत्र मंत्रालय काम करे, जो केवल घोषणाओं तक सीमित न होकर ज़मीनी स्तर पर योजनाओं को लागू करे।
- रिक्त पदों की तुरंत भर्ती – सरकारी विभागों में वर्षों से पड़े रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए। यह युवाओं के विश्वास को लौटाने की दिशा में पहला कदम होगा।
- निजी क्षेत्र में पारदर्शिता – निजी कंपनियों को स्थानीय युवाओं की भर्ती के लिए स्पष्ट और कठोर नियमों से बाँधा जाए।
- कौशल विकास और स्थानीय उद्योग – प्रदेश की परिस्थितियों और संसाधनों के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किए जाएँ। कृषि, बागवानी, पर्यटन और आईटी क्षेत्र में छोटे–मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति – बेरोज़गारी को लेकर सरकारें केवल विपक्ष पर आरोप न लगाएँ, बल्कि मिलकर काम करें। यह समस्या दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हल करने की माँग करती है।
हिमाचल प्रदेश का युवा आज crossroads पर खड़ा है। एक तरफ़ उसके पास डिग्रियाँ और योग्यता है, दूसरी तरफ़ अवसर और स्थायित्व का अभाव है। यह विरोधाभास केवल सरकारों की लापरवाही और असफल नीतियों का परिणाम है।यदि आने वाले समय में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बेरोज़गारी हिमाचल की सबसे बड़ी सामाजिक त्रासदी बन जाएगी। सरकारों को समझना होगा कि रोजगार केवल चुनावी वादा नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य और प्रदेश की आर्थिक रीढ़ है।युवाओं की ऊर्जा और सपनों को सही दिशा देना ही हिमाचल के विकास का सबसे महत्वपूर्ण आधार है। बेरोज़गारी को नज़रअंदाज़ करना, दरअसल, पूरे समाज और राज्य को अंधकार में धकेलना है।

