प्रधानमंत्री ने अपने दौरे में आपदा प्रभावितों से मुलाकात भी की।
पीएम मोदी ने हिमाचल के लिए 1,500 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा की है
भावुक पल वह रहा जब उन्होंने मंडी जिले की 11 महीने की बच्ची नीतिका से भेंट की।

संपादक राम प्रकाश वत्स
प्रधानमंत्री ने अपने दौरे में आपदा प्रभावितों से मुलाकात भी की। इनमें सबसे भावुक पल वह रहा जब उन्होंने मंडी जिले की 11 महीने की बच्ची नीतिका से भेंट की। नीतिका ने अपने माता-पिता और दादी को बादल फटने की त्रासदी में खो दिया। उसका वीडियो पहले ही वायरल हो चुका था और राज्य सरकार ने उसे “स्टेट चाइल्ड” घोषित किया है। यह उदाहरण दर्शाता है कि आपदा केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि मानवीय पीड़ा की गहरी परतें हैं। हर परिवार की त्रासदी एक नई कहानी कहती है और हमें याद दिलाती है कि पहाड़ी राज्यों की संवेदनशीलता को नजरअंदाज करना कितना खतरनाक हो सकता है।
पीएम मोदी ने इस कठिन समय में हिमाचल के लिए 1,500 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा की है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की दूसरी किस्त अग्रिम रूप से जारी करने का निर्णय भी लिया गया है। निश्चित ही यह राहत प्रभावित परिवारों तक तत्काल मदद पहुंचाने में सहायक होगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल आर्थिक सहायता ही राज्य को आपदा से उबार सकती है? पुनर्वास की प्रक्रिया केवल पैसों से पूरी नहीं होती; इसके लिए बेहतर योजना, पारदर्शी कार्यान्वयन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी जरूरी है।
हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक संरचना और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ इसे और भी संवेदनशील बनाती हैं। पहाड़ों पर बढ़ता अनियंत्रित निर्माण, नदियों के किनारे अतिक्रमण और वनों की अंधाधुंध कटाई आपदाओं की तीव्रता को और बढ़ा रही है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों के लिए यह समय आत्मचिंतन का है कि वे आपदा प्रबंधन को केवल तात्कालिक राहत तक सीमित न रखें, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर टिकाऊ नीतियां बनाएँ।
इस त्रासदी ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि आपदा प्रबंधन में “पूर्व तैयारी” ही सबसे प्रभावी रणनीति है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ ने राहत कार्यों में अपनी दक्षता दिखाई है, लेकिन इन बलों की संख्या, उपकरण और प्रशिक्षण को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। साथ ही, स्थानीय पंचायतों और स्वयंसेवी संगठनों को भी आपदा प्रबंधन की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से जोड़ा जाना चाहिए। इससे न केवल त्वरित प्रतिक्रिया संभव होगी बल्कि स्थानीय स्तर पर जागरूकता भी बढ़ेगी।
अंततः, हिमाचल की इस आपदा से हमें यही सीख लेनी चाहिए कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए बिना विकास संभव नहीं है। प्रधानमंत्री का दौरा और सहायता राशि निश्चित रूप से राहत का संदेश देती है, लेकिन वास्तविक बदलाव तभी आएगा जब केंद्र और राज्य मिलकर पहाड़ी राज्यों के लिए दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन नीति पर काम करेंगे। आज की पीड़ा को कल की सीख में बदलना ही सच्ची संवेदना और दूरदर्शिता होगी।

