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आपदा में छिपा पर्यावरणीय सबक और अवसर

RamParkash Vats
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लेखिक डॉ. अशोक कुमार सोमल पूर्व भारतीय वन सेवा अधिकारी, हिमाचल प्रदेश

सच्चाई यह है कि भारी बारिश और भूस्खलन के समय पेड़ अपनी जड़ों समेत उखड़ जाते हैं और तेज बहाव में बहकर नीचे घाटियों, डैमों और नदियों तक पहुंच जाते हैं। चट्टानों और मिट्टी से टकराते हुए यह लकड़ी बिना तराशी, बिना कटाई-चिरान के बहाव के साथ आती है, जिसे तकनीकी भाषा में “ड्रिफ्ट वुड” कहा जाता है। इस स्थिति में यह लकड़ी अवैध कटाई नहीं, बल्कि प्राकृतिक आपदा की उपज होती है।

वन कानूनों में भी यह स्पष्ट प्रावधान है कि नदी-नालों और डैमों में बहकर आई लकड़ी सरकार की संपत्ति मानी जाती है। स्थानीय लोग केवल अपने उपयोग के लिए सीमित मात्रा में इसे उठा सकते हैं, लेकिन इसे बाजार में बेचना निषिद्ध है। यदि राज्य सरकार इस लकड़ी को व्यवस्थित रूप से इकट्ठा करके नीलाम करे तो यह प्रदेश की आय का एक वैकल्पिक स्रोत बन सकता है। अनुमान है कि इस बार बहकर आई लकड़ी की कीमत सौ करोड़ रुपये तक हो सकती है।

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