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संपादकीय मंथन और चिंतन:भारतीय बांधों पर संकट-अस्तित्व खतरे में, संचालन व संरचना में भारी खामियाँ, समतल क्षेत्रों में मानसून का प्रलय.

RamParkash Vats
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संपादक राम प्रकाश वत्स

भारत में बाढ़ के प्रमुख कारण , बांधाओं की संरचना पुनः विचार करना होगा।

  • भारी मानसूनी वर्षा और बदलता जलवायु
  • नदियों का अतिप्रवाह और गाद जमाव
  • बादल फटना और हिमालयी क्षेत्रों में बेतहाशा बारिश
  • बांधो में क्षमता से ज्यादा अत्यधिक जल भराव के कारण अधिक पानी छोड़ना
  • अनियोजित शहरीकरण और जल निकासी की विफलता
  • जंगलों की कटाई, भूमि क्षरण और मानवजनित गतिविधियाँ
  • जंगलो के प्राकृतिक बातावरण अंधाधुंध छेड़छाड़

भारत में बांधों का अस्तित्व वर्तमान में गहरे संकट में है, क्योंकि वे बदलते मौसम, तेज़ बारिश और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। मानसून का कहर इन्हें कमजोर बना रहा है, जिसके कारण नीचे के क्षेत्रों में जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो रही है और खास तौर पर समतल क्षेत्रों में पानी अकल्पनीय विनाश लेकर आता है.

बांधों का उद्देश्य और वर्तमान स्थिति

भारत के पहाड़ी इलाकों से निकलने वाली नदियाँ व उनकी सहायक धाराएं, भारी बारिश और अचानक बादल फटने जैसी घटनाओं के प्रचंड वेग को नियंत्रित करने के लिए ही बांधों का निर्माण किया गया था. इन बांधों से बिजली उत्पादन, सिंचाई और जल आपूर्ति के साथ-साथ बाढ़ नियंत्रण जैसी महत्त्वपूर्ण सेवाएं भी प्राप्त होती हैं. लेकिन 2025 की स्थिति दिखाती है कि इन बांधों की निर्माण प्रक्रिया में तकनीकी और प्रशासनिक खामियों के कारण यह अपने मुख्य उद्देश्यों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं.

बांध निर्माण में 2025 में आई खामियाँ

हाल के वर्षों में देखी गई बांधों की विफलता इस ओर इशारा करती है कि निर्माण और रखरखाव के मानकों का पालन पर्याप्त रूप से नहीं हो रहा है. डिजाइन की त्रुटियाँ, पुराने और जर्जर स्ट्रक्चर, स्थानीय भूगोल को अनदेखा करना, और पर्याप्त निगरानी का अभाव बांधों को जोखिम में डालते हैं. इसके अलावा अत्यधिक शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय परिवर्तन बांधों की संरचना पर अतिरिक्त दबाव बना रहे हैं.

भविष्य की दिशा

अब समय आ गया है कि बांधों की सुरक्षा, मैनिटेनेंस और स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार नवीनीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए. सरकार को चाहिए कि वह त्वरित रूप से संरचनात्मक ऑडिट, डिज़ाइन सुधार, और वास्तविक समय मॉनिटरिंग वाले तंत्र लागू करे। साथ ही, आपदा प्रबंधन के मजबूत सिस्टम और लोगों के लिए जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है.

बांधों का उल्टा प्रभाव अब स्पष्ट रूप से समाज पर मंडराता खतरा बन चुका है. बगैर ठोस उपायों के, भविष्य में यह संकट और विकराल रूप धारण कर सकता है। इसलिए, ऐतिहासिक रूप से बाढ़ नियंत्रण के लिए बने बांध अब पुनः विचार और बेहतर प्रबंधन की मांग कर रहे हैं.

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