न्यूज़ इंडिया आजतक सपादक राम प्रकाश वत्स
शिमला 29 अगस्त 2025:हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में प्रस्तुत किए गए प्रश्नोत्तर ने राज्य की प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक तस्वीर के कई पहलुओं को उजागर किया। आंकड़े चौंकाने वाले भी हैं और भविष्य की नीति निर्माण के लिए चेतावनी भी।
1. पदों की कमी और कार्यबल का संकट
सरकार ने स्वीकार किया कि प्रदेश के 30 बोर्डों और निगमों में से तीन संस्थानों में कुल 417 पद समाप्त किए गए हैं। सबसे ज्यादा झटका हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड को लगा, जहाँ 337 पद खत्म कर दिए गए। पहले से ही 10,375 पद रिक्त होने के कारण बोर्ड में कार्यबल का भारी संकट है। यह सवाल उठाता है कि बिजली जैसी बुनियादी सेवा में सरकार किस प्रकार गुणवत्ता और गति बनाए रखेगी।
2. पुलिस कर्मियों को अतिरिक्त वेतन
पुलिस कर्मियों को एक माह का अतिरिक्त वेतन देना निश्चित रूप से मनोबल बढ़ाने वाला कदम है। लेकिन साथ ही यह आवश्यक है कि पुलिस विभाग को भी स्वास्थ्य विभाग की तरह नया वेतनमान मिले। यह न केवल कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार करेगा बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी सकारात्मक असर डालेगा।
3. अवैध खनन की भयावहता
बीते दो वर्षों में 23,429 अवैध खनन मामलों का दर्ज होना बेहद गंभीर संकेत है। 15 करोड़ रुपये जुर्माना वसूलना तो निवारक कार्रवाई है, लेकिन सवाल यह है कि अवैध खनन इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है? इससे पर्यावरणीय असंतुलन और स्थानीय बुनियादी ढांचे को गंभीर खतरा है। सरकार को केवल जुर्माने से आगे बढ़कर कठोर और स्थायी नीतिगत कदम उठाने होंगे।
4. करुणामूलक नौकरियाँ और बेरोजगारी की चिंता
राज्य में 1,609 करुणामूलक नियुक्तियों के मामले लंबित होना संवेदनशील मुद्दा है। जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को सरकारी सेवा के दौरान खोया है, उन्हें समय पर राहत मिलना चाहिए। सरकार का यह कहना कि “एकमुश्त समाधान संभव नहीं” निराशाजनक है। नीति अनुसार नियमित निपटारा होना चाहिए, वरना यह पीड़ित परिवारों के लिए अन्याय साबित होगा।
5. पर्यटन और निवेश का रुख
सरकार ने स्पष्ट किया है कि पर्यटन विभाग और पर्यटन निगम की किसी भी संपत्ति को न तो बेचा जाएगा और न ही लीज पर दिया जाएगा। यह फैसला स्वागतयोग्य है क्योंकि पर्यटन हिमाचल की अर्थव्यवस्था का आधार है। निजीकरण से स्थानीय हित प्रभावित हो सकते थे।
6. आपदा अध्ययन का अभाव
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पास बादल फटने और बाढ़ जैसी घटनाओं का अध्ययन करने का कोई तंत्र नहीं होना गंभीर लापरवाही है। जबकि हिमाचल हर साल प्राकृतिक आपदाओं से जूझता है, वैज्ञानिक अध्ययन और पूर्वानुमान प्रणाली न होना अस्वीकार्य है। केंद्र से रिपोर्ट का इंतज़ार करना पर्याप्त नहीं—राज्य को स्वयं भी अनुसंधान और तैयारी का ढांचा विकसित करना होगा।
7. सीमेंट की बढ़ती कीमतें
सीमेंट कंपनियों द्वारा छह–सात बार कीमतें बढ़ाना आम उपभोक्ता और निर्माण क्षेत्र दोनों के लिए बोझ है। यद्यपि सरकार का कहना सही है कि कीमतों का निर्धारण कंपनियाँ स्वयं करती हैं, फिर भी राज्य को उपभोक्ता हित संरक्षण और वैकल्पिक उपायों (जैसे राज्य स्तरीय सीमेंट संयंत्र) की दिशा में सोचना चाहिए।
विधानसभा सत्र के ये तथ्य हिमाचल के विकास, प्रशासन और जनता से जुड़े कई पहलुओं पर गंभीर प्रश्न उठाते हैं। पदों की कमी, अवैध खनन, करुणामूलक नौकरियों का लंबित रहना और आपदा अध्ययन का अभाव—ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिनका समाधान तत्काल आवश्यक है। दूसरी ओर, पुलिस कर्मियों को अतिरिक्त वेतन, पर्यटन संपत्तियों को न बेचने का निर्णय और मल्टी-टास्क वर्करों की स्पष्ट स्थिति पारदर्शिता की ओर सकारात्मक कदम हैं।

