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ओबीसी संगठनों ने तेज़ की आवाज़ — 27% आरक्षण, पारदर्शिता और युवा सुरक्षा को लेकर राज्य से ठोस कदमों की मांग

RamParkash Vats
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Bharmar/05/10/2025 /Ram Parkash Vats

हिमाचल प्रदेश में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) संगठनों ने एक बार फिर अपने अधिकारों और सामाजिक न्याय की मांग को लेकर स्वर बुलंद कर दिए हैं। हाल ही में अध्यक्ष मनोहर लाल की अध्यक्षता में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से 27 प्रतिशत आरक्षण के पूर्ण क्रियान्वयन, नशा मुक्ति अभियानों की मज़बूती, और शिक्षा–रोज़गार में समान अवसर जैसे मुद्दों पर राज्य व केंद्र सरकार से ठोस नीति कदम उठाने की अपील की।

बैठक में कहा गया कि मंडल आयोग की सिफारिशों और 93वें संवैधानिक संशोधन के बावजूद कई विभागों और संस्थानों में आरक्षण का क्रियान्वयन असमान बना हुआ है। प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि “कागज़ों पर आरक्षण” तो है, पर वास्तविक लाभ बहुत सीमित वर्ग तक पहुँच पा रहे हैं। उन्होंने सरकारी नियुक्तियों और शैक्षणिक प्रवेशों में पारदर्शिता लाने, आरक्षित पदों की नियमित निगरानी और ‘क्रीमी-लेयर’ मानदंड की स्पष्टता की माँग दोहराई।संगठनों का कहना है कि 27% आरक्षण का त्वरित और पूर्ण कार्यान्वयन ही ओबीसी समुदायों को वास्तविक सामाजिक-आर्थिक न्याय दिला सकता है। इसके लिए वे राज्य सरकार से समय-बद्ध रोडमैप, भर्ती एवं प्रवेश आँकड़ों की RTI व विभागीय ऑडिट के माध्यम से समीक्षा, और समान प्रतिनिधित्व की गारंटी की माँग कर रहे हैं।

बैठक में युवाओं में बढ़ते नशे के प्रसार को भी गंभीर चिंता का विषय बताया गया। ओबीसी प्रतिनिधियों ने कहा कि नशे की समस्या केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि सामाजिक विघटन का प्रश्न बन चुकी है। उन्होंने राज्य सरकार से अनुरोध किया कि ओबीसी बहुल क्षेत्रों में बिलिटेशन सेंटर, काउंसलिंग यूनिट्स, और स्कूल–कॉलेज स्तर पर नशा-रोधी शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए जाएँसरकार की ओर से हाल ही में जारी ड्रग नियंत्रण नीति, “दिशा” काउंसलिंग सेंटरों के विस्तार और डे-एडिक्शन सुविधाओं को सराहा गया, पर संगठनों का मानना है कि “इन योजनाओं को स्थानीय स्तर पर अधिक सक्रिय और जवाबदेह रूप में लागू करने की ज़रूरत है।”

विशेषज्ञों के अनुसार, 93वाँ संशोधन राज्यों को शिक्षा और अवसर-समानता में विशेष प्रावधान बनाने की शक्ति देता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में 27% ओबीसी आरक्षण को संवैधानिक रूप से वैध माना था, परंतु ‘क्रीमी लेयर’ और व्यावहारिक क्रियान्वयन जैसे मुद्दे अब भी नीति की चुनौती बने हुए हैं।बैठक के अंत में निर्णय लिया गया कि यदि मांगों पर शीघ्र कार्यवाही नहीं हुई, तो संगठन प्रदेशव्यापी जनजागरण और धरना-आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।ओबीसी नेताओं ने कहा — “हम न आरक्षण का दुरुपयोग चाहते हैं, न उपेक्षा; बस समान अवसर और न्याय की ठोस गारंटी चाहते हैं।”

मुख्य मांगें: 27% आरक्षण का पूर्ण, पारदर्शी क्रियान्वयन,भर्ती और प्रवेश प्रक्रियाओं की समीक्षा,ओबीसी युवाओं के लिए रोजगार व शिक्षा में विशेष अवसर,नशा-रोधी कार्यक्रमों में सामुदायिक साझेदारी और संसाधन विस्तार

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