Reading: संपादकीय मंथन और चिंतन:साइबर अपराध से निपटने को चाहिए तत्परता और जागरूकता -डीजीपी अशोक तिवारी की दूरदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण बना मिसाल

संपादकीय मंथन और चिंतन:साइबर अपराध से निपटने को चाहिए तत्परता और जागरूकता -डीजीपी अशोक तिवारी की दूरदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण बना मिसाल

RamParkash Vats
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डीजीपी अशोक तिवारी {DHARMSHALA}

भारतीय आरक्षित वाहिनी, सकोह के 26वें स्थापना दिवस एवं रजत जयंती समारोह में पुलिस महानिदेशक अशोक तिवारी का संबोधन केवल एक औपचारिक वक्तव्य नहीं था, बल्कि यह आधुनिक पुलिस व्यवस्था के सामने खड़ी चुनौतियों और उनके समाधान की स्पष्ट दिशा भी था। अशोक तिवारी ने जिस दूरदर्शिता के साथ साइबर अपराध की गंभीरता पर बल दिया, वह आज के डिजिटल युग में पुलिस की कार्यशैली को नया दृष्टिकोण देने वाली सोच है। तकनीक के तेजी से बढ़ते प्रभाव के बीच अपराध भी अब आभासी दुनिया में अपने पांव पसार चुका है। ऐसे में तत्परता और जागरूकता ही वह कवच है, जो समाज और कानून-व्यवस्था को सुरक्षित रख सकता है

डीजीपी की यह बात और भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने पुलिसकर्मियों को जात-पात और धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठकर पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम करने की प्रेरणा दी। यह दृष्टिकोण बताता है कि पुलिस केवल कानून लागू करने वाली संस्था नहीं है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और विश्वास की वाहक भी है। एक ईमानदार और दूरदर्शी अधिकारी का यही गुण होता है कि वह अपने विभाग को न केवल अनुशासन में रखे, बल्कि समाज में उसकी सकारात्मक छवि भी स्थापित करे। अशोक तिवारी का यह संदेश निश्चित रूप से आने वाले समय में पुलिसबल को और अधिक सुदृढ़ और पारदर्शी बनाएगा।

महिला कर्मचारियों की कार्यकुशलता की सराहना कर उन्होंने यह संकेत दिया कि पुलिसिंग का भविष्य लैंगिक संतुलन के बिना अधूरा है। पुलिस विभाग में महिलाओं का मनोबल बढ़ाना न केवल प्रशासनिक आवश्यकता है, बल्कि सामाजिक न्याय की भी मांग है। जब महिलाएं पुलिस की मुख्यधारा में आत्मविश्वास के साथ कार्य करेंगी, तो विभाग की कार्यकुशलता स्वतः कई गुना बढ़ जाएगी। यह सोच ही एक उच्च नैतिक मानक और सहानुभूतिपूर्ण नेतृत्व का प्रमाण है।

इसके अतिरिक्त, अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार और उचित नेतृत्व पर जोर देकर डीजीपी ने यह स्पष्ट कर दिया कि एक मजबूत विभाग की असली नींव नीचे से तैयार होती है। यदि वरिष्ठ अधिकारी संवेदनशील और सहयोगी होंगे तो अधीनस्थ कर्मचारी भी विभाग के लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूरी निष्ठा से योगदान देंगे। पुलिस बल की मजबूती केवल हथियारों या तकनीक से नहीं, बल्कि आपसी विश्वास, संवाद और नेतृत्व की गुणवत्ता से आती है।

अशोक तिवारी की यह सोच और संदेश आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक है। बढ़ते साइबर अपराध, सड़क और हाईवे अपराध, तथा समाज में बदलते अपराध के स्वरूप को देखते हुए ऐसी दूरदर्शिता ही पुलिस बल को नई दिशा दे सकती है। एक ईमानदार अधिकारी की यही विशेषता होती है कि वह तकनीकी चुनौतियों, सामाजिक अपेक्षाओं और प्रशासनिक संरचना के बीच संतुलन साधकर विभाग को भविष्य के लिए तैयार करे। इस दृष्टि से, उनका वक्तव्य केवल पुलिस कर्मियों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए मार्गदर्शक है।

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